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Showing posts from 2021

⚡ *पेरियार ने पत्नी का ह्रदय परिवर्तन किया !*💫

 ⚡ *पेरियार ने पत्नी का ह्रदय परिवर्तन किया !*💫          तमिलनाडू के क्रांतीकारी महामानव *पेरियार रामास्वामी नायकर* का विवाह होने के पश्चात जब उनकी पत्नी *नागम्मई* दुल्हन बनकर ससुराल आई, तो उन के सामने दो संस्कृतियों का संगम था! अन्धविश्वास की सौगात उन्हे नैहर और ससुराल में विरासत के रुप में मिली थी।              👱‍♀ अपने पति का धर्म के प्रति चिंतन ने उन्हें भी सोचने पर बाध्य कर दिया । वे दो पाटो में पिसी जा रही थी। 🙇‍♀ 👉 दशहरा जैसे जुलूशों पर जब भारत की जनता ताजियों की तरह *रावण* के पुतले हिन्दू धर्म के अनुसार दफनाते या जलाते थे तो पेरियार *राम* का पुतला जलाते थे। 👊          🤦🏻‍♀ माता नागम्मई को प्रारम्भ में यह देखकर बहुत बुरा लगता था पर पेरियार जब अपनी पत्नी को समझाते कि अगर... ➡ *हम तुम्हे गर्भावस्था में जंगल में छोड़ दे तो क्या तुम फिर भी हमारी ही पूजा करोगी?*  ➡ *अगर हम तुम्हे जुए के दांव पर लगा कर हार जाये तो क्या तुम फिर भी हमे धर्मराज कहोगी?*  ➡ *अगर हमारे पांच भाई होते और त...

जाति का विनाश Dr Br Ambedkar

 जाति का विनाश : मनु और याज्ञवल्क्य के ब्राह्म्णवादी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए एक जरूरी किताब डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि “आपको यह नहीं भूलनी चाहिए कि यदि आपको इममें (जाति व्यवस्था) एक दरार बनानी है तो आपको तर्क न मानने वाले और नैतिकता को नकारने वाले वेदों व शास्त्रों को बारूद से उड़ा देना होगा। श्रुति और स्मृति के धर्म को खत्म करना होगा”। जाति के विनाश उनका आह्वान आज भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पहले। सिद्धार्थ का विश्लेषण : THIS ARTICLE IN ENGLISH जिस चीज ने भारतीय समाज तथा भारतीय आदमी, विशेषकर हिंदुओं के बहुलांश हिस्से को भीतर से संवेदनहीन, न्यायपूर्ण चेतना से रहित और अमानवीय, बना दिया, वह है, जातियों पर आधारित सामाजिक व्यवस्था। यह हमें रोज ब रोज अतार्किक, विवेकहीन, कायर, पाखण्डी-ढोंगी और आत्मसम्मानहीन बनाता है तथा व्यक्ति के आत्मगौरव और मानवीय गरिमा को क्षरित करता है। जाति- व्यवस्था ने एक ऐसा श्रेणी-क्रम रचा, जिसमें हर आदमी किसी दूसरे आदमी की तुलना में नीच है। इसने श्रम न करने वाले परजावियों को महान तथा मेहनत करने वालों को नीच तथा महानीच बना दिया। श्रम तथा श्रम करने वालों को इतन...

चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर

 चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर *इटारसी*। सतपुड़ा के जंगलों के बीच तवा बांध की तलहटी किनारे मौजूद राजा चमरदल का ऐतिहासिक किला पुरातत्व विभाग एवं सरकार की उपेक्षा का शिकार है। प्राचीनकाल के गौरवशाली इतिहास एवं चमरदल वंश की यादों को समेटे खड़े इस किले को पर्यटन के नक्शे पर जीवंत कर इसे अच्छा हैरीटेज बनाया जा सकता है, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यह किला नक्शे से ही गायब है। इस मामले में अहिरवार समाज के कार्यकर्ता अब आगे आए हैं और इस धरोहर को बचाने के लिए मुहिम शुरू करने जा रहे हैं। *क्या है प्राचीन इतिहास* इतिहास के जानकार बताते हैं कि तवा नदी पर जहां तवा बांध मौजूद है। उसके पास मेन केनाल नहर के दाईं ओर करीब 20 एकड़ जमीन पर चमरदल राजा का किला मौजूद है, जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते खंडहर में तब्दील हो चुका है। महल के समीप पानी के कुंड एवं बाबड़ी बनी हुई है जो लगभग 50 फीट गहरी थी और रखरखाव न होने से अब विलुप्त हो रही है। प्राचीन बावड़ी के समीप अंदर स्नान कुंड था जहां रानियां स्नान किया करती थीं। इसी कुंड से एक गुप्त रास्ता था जो त...

सबको पार्ले जी बिस्किट खाना है नहीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है.

 लगभग 1 वर्ष पूर्व पार्ले बिस्किट कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने कहा था कि नकदी के संकट से जूझ रहे ग्रामीण लोग 5 रुपए का पार्ले जी का पैकेट भी नहीं खरीद पा रहे है. मांग काफी घट गई है. अब अचानक ऐसा समय आया कि बिहार के सीतामढ़ी में पार्ले जी बिस्किट की मांग इतनी बढ़ गई कि स्टाक ही खत्म हो गया. इसके पीछे अफवाह और अंधविश्वास ने काम किया. मार्केटिंग का ऐसा तरीका तो कंपनी ने भी सोचा न होगा. हुआ यों कि सीतामढ़ी में जितिया पर्व से जोड़कर अफवाह फैलाई गई कि घर में जितने भी बेटे हैं, उन सबको पार्ले जी बिस्किट खाना है नहीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है. माताएं अपने पुत्र की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए यह व्रत करती हैं. इस अफवाह की वजह से पार्ले जी बिस्किट खरीदने दुकानों में भीड़ उमड़ पड़ी और देखते ही देखते इस बिस्किट का स्टाक खत्म हो गया. भावुक और भावनाप्रधान महिलाओं ने यह भी नहीं सोचा कि किसी धर्म-शास्त्र या परंपरा में पार्ले जी बिस्किट खाने का उल्लेख ही नहीं है. भारत में पहले कभी ब्रेड, बिस्किट, टोस्ट थे ही नहीं. अंग्रेजी हुकूमत में ये चीजें देश में शुरू हुईं. फिर धर्म या त्योहार से बिस...

"सही और गलत"

 "सही और गलत" सही और गलत कुछ भी ऊपर से बन कर नहीं आता, सही और गलत हम खुद और हमारा समाज ये मिलकर निर्धारित करते हैं, जैसे किसी के लिए मास खाना गलत है और किसी के लिए सही है, मास खाना सही बताने वाले को एहसास भी नही होता कि वो गलत है, आज से पहले राजा महाराजा एक से ज्यादा शादिया करते थे, और उनकी पत्नियों को भी कोई आपत्ति नहीं होती थी, क्योंकि उस समय पर समाज ने इसे सही निर्धारित कर रखा था, जैसे एक सैनिक किसी दूसरे देश के सैनिक को मारे तो वो सही है, क्योंकि हमारा देश उसे सही ठहराता है, वही अगर दूसरी जगह कोई दूसरा इंसान किसी व्यक्ति को मारे, चाहे फिर वो मरने वाला व्यक्ति कितना भी बुरा ही क्यूं ना हो, पर हमारा देश ये स्विकार नहीं करता, इसलिय मारने वाले व्यक्ति को अपनी गलती की सजा भुगतनी पड़ती है, पुराने समय में जो हुआ वो सही था, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि समय के साथ हमारी सोच बदलती रहती है, हां ये कहा जा सकता है, कि उस समय उनके लिए शायद वही सही था, जैसे पुराने समय से हमें बताया गया है कि कोई ईश्वर है जो हम से ऊपर है और वही मानव को पाप और पुण्य के हिसाब से सजा देता है, तब कोई भी मान...

"जीव हत्या और मासाहार भोजन सही या गलत"

 "जीव हत्या और मासाहार भोजन सही या गलत" प्रकृति की हर प्रजाति एक जीव है, जिसमे मानव भी आता है, और प्रकृति का हर जीव किसी अन्य जीव पर ही निर्भर करता है, धरती पर कुछ जीव अन्य जीव को खा कर गुजारा करते हैं और कुछ शाकाहारी भोजन खाते हैं, जो जीव मासाहारी भोजन खाते हैं उन्हें प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है और वो अन्य जीव के दर्द को समझने में भी सक्षम नहीं हैं, पर दूसरी और अगर मानव को देखा जाए तो वो दुसरो के दर्द को महसूस कर सकता है, पर ये बात भी सत्य है की धरती पर पैदा हुये हर जीव को अपने बारे में सोचने का पूरा अधिकार है, जीव हत्या मानव के लिए सही है या गलत वो ईस बात पर निर्भर करता है की वो दूसरा जीव मानव के लिए खतरनाक कितना है, जैसे हम एक मच्छर को, एक कॉकरोच को बिना सोचे समझे मार देते हैं क्योंकि हमे पता है की हम नहीं मारेंगे तो वो हमारे लिए नुकसानदयाक होगा, पर वही दुसरी और हम एक कुत्ते बिल्ली आदि को नहीं मारते क्यूंकि वो हमारे लिए नुकसानदयाक नहीं है,अगर हम शेर की बात करें तो हम उसे भी नहीं मारते हैं क्योंकि हमारे पास उसके लिए भी एक विकल्प है "जंगल", ये बातो से साफ है की जब त...

Q :- पाप और पुण्य क्या है, क्या पृथ्वी से बहार भी इसकी कोई सज़ा है"?

 Q :- पाप और पुण्य क्या है, क्या पृथ्वी से बहार भी इसकी कोई सज़ा है"?  Ans :- मैं आपको समझा सकता हूँ, पाप और पुण्य क्या है, पर उसके लिए आपको अपने मन से सारी पुराणी बातें निकालनी होंगी, तभी आप समझ पाएंगे, पाप और पुण्य का सम्बन्ध किसी परमात्मा से नहीं है, न ही हमारी आत्मा 84 लाख योनिओ में जाती है, पृथ्वी पर हर जीव का उतना ही हक़ है जितना एक मानव का और हर जीव के जीवन में सुख और दुःख दोनों हैं जैसे की एक मानव के जीवन में, पाप और पुण्य का सम्बन्ध सिर्फ और सिर्फ आपके समाज से, आपसे जुड़े हुए कुछ अन्य व्यक्तियों से और आपके देश के कानून से है, जिस चीज़ की सज़ा आपके देश में नहीं है, उस चीज़ की सज़ा आपको कही और भी नहीं मिलती, जैसे कि मान लो एक बच्चा जन्म लेते ही अपाहिज पैदा हो गया, तो इसका सम्बन्ध सिर्फ और सिर्फ उसकी माँ से है, ये उनकी गलती का नतीजा है, जैसे गलत दवाई खाने से, या कोई और गलत चीज़ खाने से, अब मान लो सरकार इसकी सज़ा घोषित कर दे की जिसका बच्चा अपाहिज पैदा होगा, उसको सज़ा दी जाएगी तब वो उनका पाप हो जायेगा पर अगर हमारे समाज और देश में इसके लिए सज़ा नही तो फिर कोई और सज़ा नही है आपके लिए, म...

कौन सा धर्म सच्चा कौन सा झूठा कौन सा बड़ा कौन सा छोटा"

 "कौन सा धर्म सच्चा कौन सा झूठा कौन सा बड़ा कौन सा छोटा" जब पृथ्वी पर मानव जाति की उत्पति हुई तब कोई धर्म नहीं था पृथ्वी पर, आज जैसे हम कोरोना वायरस को मान रहे हैं की ये चीन में पैदा हुआ, वैसा ही मानव जीव की उत्पति भी अफ्रीका में हुई, ये बिलकुल सत्य है की हर चिज़ की शुरुआत कहीं न कहीं से तो होती ही है, अब जब मानव की उत्पत्ती हुई धरती पे तो वो कहीं एक जगह नहीं रुका, इधर उधर भटकता रहा और ऐसे ही वो पूरी धरती पर फैल गया, जब इंसान छोटे छोटे समुह बना के रहने लगा, तब उन्हे कुछ नियम बनाने की जरुरत पड़ी, अब हर समूह ने अपने आप को एक नाम दे दिया, जैसे आर्या, मुलनिवासी या और भी कई तरह के नाम, अगर इतिहासकारों और विज्ञान के हिसाब से माने तो पहला धर्म हिंदू धर्म था, पर ये सत्य नहीं है की हर मानव हिंदू था, क्यूकी उस समय सब मानव एक दूसरे के संपर्क में नहीं थे,जैसे आज हम सिर्फ कल्पना करते हैं की कहीं और ग्रह पर भी हमारे जैसे मानव रहते होंगे, वैसे ही उस समय भी वो एक कल्पना थी की हमारी तरह दूसरी जगह भी और मानव रहते होंगे, हिंदू धर्म को देख कर फिर दुसरे स्मुहो ने भी अपना धर्म बनाया, जैसे याहुदी ध...

मोक्ष क्या है, क्या आत्मा होती है"?

 "मोक्ष क्या है, क्या आत्मा होती है"? हमारे पूर्वजो या हमारे ग्रंथो के हिसाब से मोक्ष का मतलब है जीने मरने से मुक्ति, अब मैं आप लोगो से एक सवाल करना चाहूंगा क्या आत्मा सोच समझ सकती है, इसका जवाब होगा नहीं, क्योंकि सब जानते हैं दिमाग हमारे शरीर का हिस्सा है आत्मा का नहीं, अगर आत्मा के पास दिमाग होता है तो उस हिसाब से तो हर जानवर समझदार होता, अब बात करते हैं क्या इंसान की आत्मा ही दुसरे जानवर के भी शरीर में जाती है, इसका भी जवाब है नहीं, हर जीव अपनी लाइफ में खुश भी है और दुखी भी, अगर इंसान की आत्मा ही पाप भोगने दुसरे जीव के शरीर में जाती है तो हर जीव एक सम्मान होना चाहिए था, क्योंकि वो आत्मा तो पाप भोगने गई है उस जीव में, पर ऐसा नहीं है कोई कुत्ता बडे बड़े महलो मे रहते हैं और कोई सड़को पर, कोई शेर जंगल का राजा तो कोई सर्कस का कार्टून, और दुसरी वजह अगर इंसान की आत्मा दुसरे जीवो में जा कर अपने पाप भोग कर आ चुकी है, तो फ़िर हर बच्चा पैदा ही अंबानी क्यू नहीं होता, हर बच्चा पैदा ही पूर्ण रूप से स्वस्थ क्यों नहीं होता है क्यों कोई लूला लंगड़ा पैदा होता है, कभी किसी ने सोचा है की किस...

क्या ब्रह्माण्ड में कोई शक्ति है, क्या वही शक्ति ईश्वर है वो सर्वज्ञाता, सर्वशक्तिमान है?

 क्या ब्रह्माण्ड में कोई शक्ति है, क्या वही शक्ति ईश्वर है वो सर्वज्ञाता, सर्वशक्तिमान है? ये सत्य है की पुरा ब्रह्माण्ड एक ऊर्जा से ही काम करता है, सब कुछ ऊर्जा से ही होता है, ब्रह्माण्ड में जितने ग्रह हैं सब कार्य कर रहे हैं, ब्लैकहोल हैं वो सब भी कार्य कर रहे हैं, सब एक ऊर्जा से चल रहे हैं पर उस एनर्जी के चलने में कुछ नियम लगे हैं, वो एनर्जी कुछ सोच समझ कर कार्य नहीं कर रही है, या कोई शक्ति उनसे सोच समझ कर कार्य नहीं करवा रही है, अगर कोई शक्ति सोच समझ कर कार्य करवा रही होती तो ब्रह्मांड एक दम परफेक्ट रूप से चलता, कोई उल्का पिंड धरती पर नहीं गिरते, या कोई और भयानक हल चल ब्रह्मांड में नहीं होती, जैसे एक नदी बहती है अपने नियम से, उसमे एक तर्क लगा है, पहाड़ से गिरती है दुसरी तरफ बह कर जाती है, उस नदी के बह ने में कोई शक्ति कार्य कर रही है ऐसा नहीं कहा जा सकता, मानव नाम की प्रजाति पैदा ही तभी हुई, जब प्रकृति में मानव जैसे जीव के रहने लायक वातावरण बना, न की पहले इंसान पैदा हुआ और फिर भगवान ने उसके लिए ऑक्सीजन पानी ये सब बनाया, हमारे प्रुवज ब्रह्मांड के नियमों को नहीं समझते थे, इसलि...

रामायण, महाभारत सब काल्पनिक कहानियां हैं, इतिहास नहीं। यह बात सुप्रीमकोर्ट ने भी मानी है

 हिन्दू धर्म ग्रन्थ मनोरंजन, रहस्यमय, अद्भुत कहानियों का पिटारा रामायण, महाभारत सब काल्पनिक कहानियां हैं, इतिहास नहीं। यह बात सुप्रीमकोर्ट ने भी मानी है  न कभी सतयुग, द्वापर, त्रेता युग था और न ही कोई शंकर, राम, कृष्ण, हनुमान, रावण आदि पैदा हुए।  ये सब ब्राह्मणों की लिखी काल्पनिक कहानियों के काल्पनिक पात्र हैं। वैसे ही जैसे स्पाइडर मैन और शक्तिमान जैसी कहानियां हैं। यदि कुछ पढ़े लिखे हो तो मानव सभ्यता के विकास का इतिहास पढ़िए।  मानव कब तक जंगलों में शिकार करके कच्चा मांस खाकर जीवित रहा ,कब आग का आविष्कार करके मांस भूनकर खाने लगा ,कब से खेती करने लगा ,कब पत्तों से तन ढकना शुरू किया, कब कपड़े का आविष्कार हुआ, कब लोहा, तांबा, पीतल, सोना, चांदी आदि धातुओं का आविष्कार कब हुआ।  कब मानव ने लिखना पढ़ना शुरू किया, कब कागज का आविष्कार हुआ। यह सब कुछ पूरे विश्व के इतिहास में दर्ज है और यह सब कुछ हजार साल पहले का इतिहास है, जो पुरातात्विक सबूतों का अध्ययन करके लिखा गया है।  इसलिए तर्कशील बनिए बच्चों को भी तर्कशील बनाइए । जबसे लोहे का आविष्कार हुआ यानी अड़तीस सौ साल के ...

आर्य विदेशी है प्रमाण

 #आर्य विदेशी है प्रमाण । 1. ऋग्वेद में श्लोक 10 में लिखा है कि हम (वैदिक ब्राह्मण ) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोग है। जब आर्य व् अनार्यो का युद्ध हुआ । 2. The Arctic Home At The Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि हम बाहर आए हुए लोग है । 3. जवाहर लाल नेहरु ने (बाबर के वंशज फिर कश्मीरी पंडित बने) उनकी किताब Discovery of India में लिखा है कि हम मध्य एशिया से आये हुए लोग है। यह बात कभी भूलना नही चाहिए। ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जब वो होस्टल में पढ़ रही थी। 4. वोल्गा टू गंगा में “राहुल सांस्कृतयान” (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि हम बाहर से आये हुए लोग है और यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट (भारत) कैसे आए। 5. विनायक सावरकर ने (ब्राम्हण) सहा सोनरी पाने “इस मराठी किताब में लिखा की हम भारत के बाहर से आये लोग है। 6. इक़बाल “काश्मीरी पंडित ” ने भी जिसने “सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था कि हम बाहर से आए हुए लोग है। 7. राजा राम मोहन राय ने इग्लेंड में जाकर अपने भाषणों में बोला था कि आज मै मेरी पितृ भूमि यानि अपने घर वापस आया हूँ। 8. मोहन दास करम...

साइमन कमीशन पर एक सच्चाई जो हमारे सामने गलत रूप से पेश की गई!

 साइमन कमीशन पर एक सच्चाई जो हमारे सामने गलत रूप से पेश की गई!                                            भारत में आज तक ये ही पढ़ाया गया था, कि गांधी ने साइमन कमीशन का विरोध किया!  लेकिन ये नहीं पढ़ाया जाता कि तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत किया!   इन तीनो शख्सो के नाम निम्न है - 1- सर छोटूराम जी, जो पंजाब से थे 2- एससी से डॉक्टर बाबा सहाब अम्बेडकर जी, जो महाराष्ट्र से थे! 3- ओबीसी से शिव दयाल चौरसिया जी, जो यूपी से थे!    अब सवाल ये उठता है कि गांधी ने साइमन का विरोध क्यों किया?  क्योंकि 1917 में अंग्रेजो ने एक एक कमेटी का गठन किया था, जिसका नाम था साउथ बरो कमिशन!  जो कि भारत के शूद्र अति शूद्र अर्थात आज की भाषा में एससी एसटी और ओबीसी के लोगों की पहचान कर उन्हें हर क्षेत्र में अलग अलग प्रतिनिधित्व दिया जाए और हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था!  उस समय ओबीसी की तरफ से शाहू महाराज ने भास्...

तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत किया था

 जो लोग साइमन कमीशन की सही जानकारी नही रखते और गांधी को हीरो समझते है वो सुनले समझले *साइमन कमीशन की हकीकत ।* *हमें आज तक यही  पढ़ाया गया था, कि गांधी ने साइमन कमीशन का विरोध किया था ,, लेकिन यह  नहीं पढ़ाया जाता कि तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत भी  किया था ।।* *इन तीन शख्स के नाम निम्न है -* *1- ओबीसी से चौधरी सर छोटूराम जी। जो पंजाब से थे।* *2- एससी से डॉक्टर बी आर अम्बेडकर। जो मध्यप्रदेश  से थे।* *3- ओबीसी शिव दयाल चौरसिया जो यूपी से थे।।* *अब सवाल ये उठता है कि गांधी ने साइमन का विरोध क्यों किया?*   *क्योंकि 1917 में अंग्रेजो ने एक एक कमेटी का गठन किया था,, जिसका नाम था साउथ बरो कमिशन,, जो कि भारत के शूद्र अति शूद्र अर्थात आज की भाषा में एससी एसटी और ओबीसी के लोगों की पहचान कर उन्हें हर क्षेत्र में अलग अलग प्रतिनिधित्व दिया जाए,, और हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था,, उस समय ओबीसी की तरफ से शाहू महाराज ने भास्कर राव जाधव को,, और एससी एसटी की तरफ से डॉक्टर अम्बेडकर को इस कमीशन के समक्ष अपनी मांग रखने क...

यह एक इंटरनल फ्लेम झरना है , ये न्यूयोर्क के चेस्टनेट रिज पार्क में स्थित है।

 यदि यह स्थल न्यूयॉर्क में न होकर भारत मे होता तो भारत के धार्मिक ठेकेदारों ने इसे किसी माताजी की अखंड ज्योत घोषित कर उसे बाबा अमरनाथ की तरह अपने धंधे का साधन बना दिया होता । यह एक इंटरनल फ्लेम झरना है , ये न्यूयोर्क के चेस्टनेट रिज पार्क में स्थित है। इस की विशेषता यह है कि यहाँ साल भर पानी बहता रहता है और उसके नीचे एक लौ लगातार जलती रहती है। ऐसा प्राकृतिक मीथेन गैस की वजह से होता है। पर वहाँ के लोग जानते हैं कि धरती में मौजूद प्राकृतिक गैस का रिसाव होने से यह होता है, उसमे कोई चमत्कार नहीं है। भारत में भी हिमाचल के कांगड़ा में स्थित माता के एक प्रमुख शक्ति पीठ ज्वालामुखी देवी के मंदिर में प्राकृतिक ज्वाला प्राचीन काल से लगातार जल रही है। भारत मे हजारो सालों से लोगों को धर्म के नाम पे बेवकूफ बनाया गया है। विज्ञान को भगवान का जादू चमत्कार बताकर लोगो से पैसे ठग कर मानसिक विकलांग बनाया गया है।  स्थानीय लोग इसे दैवीय चमत्कार मानते हैं। इसको लेकर कई किवदंतियां भी प्रचलित हैं। कुछ लोगों के मुताबिक यह लौ उस समय बुझेगी, जब धरती पर महाप्रलय जैसी कोई आपदा आने वाली होगी। इस झरने को देखने...

सवर्ण हिंदुओं की आज भी मान्यता है कि दलितों ने कभी मरे जानवरों जैसे गाय, बैल, भैंस आदि का मांस खाया इसलिए वे व्यवस्था से वंचित और घृणित हुये।

  हालांकि ऐसे लोग यह समझने में आज भी नाकाम है कि आदिमानव मांस खाकर ही जिंदा रहे आधुनिक मनुष्य ने लगभग 10 हजार वर्षों में ही खेती करना सीखा है। उससे पूर्व मांस भक्षण ही चारा था लेकिन वे यह समझने में नाकाम है कि सृष्टि की रचना नहीं हुई बल्कि विकासक्रम में निर्माण हुआ है।  उससे भी बड़ी बात यह है कि मनुष्य पहले सबकुछ खाता था और धीरे धीरे वह अत्याचारी, निरंकुश, क्रूर तथा अराजक हो गया। जिसके चलते बुद्ध ने अहिंसा का सिद्धांत प्रतिपादित कर जानवरों पर हिंसा, क्रूरता हेतु दया जताई और मरे मांस के भक्षण को ही उचित कहा। बुद्ध के इस सिद्धांत से लोग प्रभावित हुये और अहिंसा को प्रत्येक व्यक्ति ने आत्मसात किया गया तथा मांसाहार बहुत कम हो गया और जीवदया अधिक बढ़ गई थी। इस सिद्धान्त के बदले ब्राह्मणों ने दोहरी क्रांति करते हुये पूर्ण शाकाहार का सुझाव लाते हुए इसे धर्म मे प्रतिपादित किया और वे शाकाहार में और अधिक सफल हुये। यहीं से पूर्ण शाकाहारी सिद्धांत की नींव पड़ी। बहरहाल! इस क्रम को सभी हिन्दू कभी खुलकर स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि फिर सबकुछ डगमगा जायेगा पर मैंने जैसा शुरू में कहा कि सवर्ण हिंदु...

अमरनाथ की गुफा में बना हुआ बर्फ का पिंड भगवान नहीं

 स्वामी अग्निवेश ने कहा कि अमरनाथ की गुफा में बना हुआ बर्फ का पिंड भगवान नहीं है वह तो एक सीधी सादी वैज्ञानिक तौर पर समझने लायक चीज़ है  अगर उतनी ऊंचाई पर इतने कम तापमान पर गुफा की छत से पानी टपकेगा तो पिंड के रूप में जमेगा ही   उसकी पूजा करना उस यात्रा के दौरान कई लोगों का हर साल मर जाना यात्रा के लिए सेना लगाना अंधविश्वास है  इतना बोलते ही हिंदुत्व के नाम पर भारत में बच्चों और युवाओं को मूर्ख बनाने वाले गुंडे सक्रीय हो गये  स्वामी अग्निवेश का गला काट कर लाने वाले को दस लाख रूपये के इनाम की घोषणा कर दी गई  स्वामी अग्निवेश के खिलाफ एफआईआर की झड़ी लग गई  दो दो जिला अदालतों ने उनके खिलाफ वारंट निकाल दिए  ठीक जैसे जब ब्रूनो ने कहा कि बाइबिल में गलत लिखा है कि सूर्य पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है  सत्य यह है कि पृथ्वी ही सूर्य के चरों तरफ घूमती है  इस बात पर चर्च के पादरियों ने ब्रूनों को जिंदा जला दिया था  आज हम ईसाईयों की इस बात के लिए आलोचना करते हैं  लेकिन खुद अंधविश्वास में डूबे रहकर सच बोलने वाले का गला काटने की घोषणा करने ...

1859 को राजा के एक आदेश के जरिए महिलाओं के ऊपरी वस्त्र न पहनने के कानून को बदल दिया गया।

 आजकल देश में संस्कृति को लेकर एक अजीबोगरीब बहस छिड़ी हुई है। कोई कहता है महिलाओं को फ़टी जीन्स नहीं पहननी चाहिए, कोई कह रहा पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया है। इतिहास की पड़ताल करने से पता चलता है कि संस्कृति की बातें करने वाले भारत में ही महिलाओं को अपने स्तन ढकने का अधिकार पाने के लिए भी बड़ा संघर्ष करना पड़ा था।  केरल के त्रावणकोर इलाके पर वहां की महिलाओं को 26 जुलाई 1859 में वहां के महाराजा ने अवर्ण औरतों को।शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े पहनने की इजाजत दी। उन महिलाओं को अंगवस्त्र या ब्लाउज पहनने का हक पाने के लिए 50 साल से ज्यादा सघन संघर्ष करना पड़ा। इस कुरूप परंपरा की चर्चा में खास तौर।पर निचली जाति नादर की स्त्रियों का जिक्र होता है क्योंकि अपने वस्त्र पहनने के हक के लिए उन्होंने ही सबसे। पहले विरोध जताया। उस समय न सिर्फ अछूत ही नहीं बल्कि नंबूदिरी ब्राहमण और क्षत्रिय नायर जैसी जातियों की औरतों पर भी शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने से रोकने के कई नियम थे। नंबूदिरी औरतों को घर के भीतर ऊपरी शरीर को खुला रखना पड़ता था। वे घर से बाहर निकलते समय ही अपना सीना ढक सकती...

चंद्रशेखर ने संयुक्त राष्ट्र में उठाया मानवाधिकार का मुद्दा

चंद्रशेखर ने संयुक्त राष्ट्र में उठाया मानवाधिकार का मुद्दा चंद्रशेखर आज़ाद वीडियो साथ भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष किसान आंदोलन एवं सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के साथ हुए मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा उठाया हैं। चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने इस दौरान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से कहा कि भारत की सरकार अपने आंदोलनकारी नागरिकों के मानवाधिकारों का मूल रूप से हनन कर रही हैं और प्रताड़ित कर रही है। भीम आर्मी चीफ़ चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में प्रत्यक्ष रूप से किसान आंदोलन‌ और सीएए विरोधी आंदोलन से जुड़े लोगों के साथ हुए मानवाधिकार उल्लंघन पर बात रखी। चंद्रशेखर रावण ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में लोगों के मानवाधिकार होते हैं और वे मानवाधिकार स्वतंत्र होते हैं। लेकिन भारत में सरकार द्वारा इन्हीं स्वतंत्र मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है। चंद्रशेखर रावण ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष कहा कि भारत में सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले लोगों को अलोकतांत्रिक तरीको...

ज्वालादेवी की लौ जिसे हमारे देश वाले चमत्कार मानते है, ये सिर्फ हमारे देश मे नहीं और देशों में भी है

 ज्वालादेवी की लौ जिसे हमारे देश वाले चमत्कार मानते है, ये सिर्फ हमारे देश मे नहीं और देशों में भी है पर दूसरे देशों में इसको चमत्कार का नाम नही दिया गया क्योंकि लोग सच जानते है। उदाहरण के लिए न्यूयॉर्क के चेस्टनेट रिज काउंटी पार्क में एटरनल फ्लेम फाल्स नामक झरना। यहां भी पानी के बीच ज्वाला जलती है, पर लोग इसको पूजते नहीं, क्योंकि जानते है धरती में मौजूद मीथेन गैस के रिसाव के कारण आग जलती रहती है। ज़मीन से तेल और गैस निकालने वाली कंपनियां जैसे ongc, iocl आदि जब समुद्र से तेल या गैस निकालते है तो समुद्र के बीच मे भी ऐसी ज्वाला जलती नज़र आती है।  पशु या पेड़-पौधे जो मिट्टी में दब जाते है, वो धीरे-धीरे हाइड्रोकार्बन में टूटते है और जीवाश्म ईंधन या फॉसिल फ्यूल में बदल जाते है। जैसे कोयला, मीथेन, प्राकृतिक गैस आदि। इसके अतिरिक्त हिमालय के निचले भाग जहां मंदिर है वहां ऐसे ईंधन ज्यादा होते है। ज्वाला देवी की लौ भी धरती से रिसने वाली मीथेन या कोई अन्य ज्वलनशील गैस के कारण है जैसे प्राकृतिक गैस (NPG)। आप रसोई घर की LPG गैस पर आश्चर्य नही करते क्योंकि सच जानते है कि सिलिंडर में जो गैस है, ...

नास्तिक -चार्वाक ऋषि -- जगत सत्यम ब्रह्म मिथ्या!!

 4 नास्तिक -चार्वाक ऋषि -- जगत सत्यम ब्रह्म मिथ्या!!                  नास्तिक दर्शन भारतीय दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को कहा जाता है जो वेदों को नहीं मानते थे। भारत में भी कुछ ऐसे व्यक्तियों ने जन्म लिया जो वैदिक परम्परा के बन्धन को नहीं मानते थे वे नास्तिक कहलाये तथा दूसरे जो वेद को प्रमाण मानकर उसी के आधार पर अपने विचार आगे बढ़ाते थे वे आस्तिक कहे गये। नास्तिक कहे जाने वाले विचारकों की तीन धारायें मानी गयी हैं - चार्वाक, जैन तथा बौद्ध। . चार्वाक दर्शन एक भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है। वेदबाह्य दर्शन छ: हैं- चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत। इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। चार्वाक प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। ये नास्तिक मत के प्रवर्तक बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। बृहस्पति और चार्वाक कब हुए इसका कुछ भी पता नहीं है। बृहस्पति को चाणक्य न...

मैं नास्तिक क्यों भगत सिंह

  एक बार भगत सिंह कहीं जा रहे हैं थे रेलगाड़ी से और एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी गाड़ी को बहुत देर रुकना था तो भगतसिंह पानी पीने के लिए उतरे* पास ही एक कुँए के पास गये ,और पानी पिया तभी उनकी नजर कुछ दूर पर खड़े एक शख्स पर पड़ी जो धूप में नंगे बदन खड़ा था और बहुत भारी वजन उसके कंदे पर रखा था तरसती हुई आंखों से पानी की ओर देख रहा था मन मे सोच रहा था ,मुझको थोड़ा पानी पीने को मिल जाये भगत सिंह उसके पास गए,और पूछने लगे आप कौन हो और इतना भारी वजन को धूप में क्यो उठाये हो* तो उसने डरते हुए कहा,साहब आप मुझसे दूर रहे नही तो आप अछूत हो जायँगे क्योकि मैं एक बदनसीब अछूत हूँ भगत सिंह ने कहा आपको प्यास लगी होगी पहले इस वजन को उतारो और मैं पानी लाता हुँ आप पानी पी लो भगत सिंह के इस व्यवहार से वह बहुत खुश हुआ भगत सिंह ने उसको पानी पिलाया और फिर पूछा आप अपने आपको अछूत क्यो कहते हो तो उसने जबाब दिया हिम्मत करते हुए अछूत मैं नही कहता अछूत तो मुझको एक वर्ग विशेष के लोग बोलते हैं और मुझसे कहते हैं आप लोग अछूत हो  तुमको छूने से धर्म भृष्ट हो जयेगा और मेरे साथ जानवरों जैसा सलूक करते हैं आप ने तो मुझको पानी पिल...

राजकुमारी होलिका कश्यप की सच्चाई

 राजकुमारी होलिका कश्यप की सच्चाई :- भारत देश के मूलनिवासियों की हार सर्वणों की जीत.…....…..…….…  हिरण्यकश्यप हरदोई जिला (जिसका नाम हरिद्रोही था) उत्तर प्रदेश के निवासी बैकवर्ड थे, हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिनका नाम होलिका था वो बहुत ही सुंदर होने के साथ साथ युद्ध कला में भी निपुण व बहादुर थी, उनकी सुंदरता को देखते हुए सर्वण जाति के लोग काफी जलते थे! हिरण्यकश्यप का एक बिगड़ैल लड़का प्रह्लाद था, जिसका संगत स्वर्ण के लड़को के साथ गलत चाल चलन हो गया था जिसके कारण हिरण्यकश्यप उसको लेकर काफी चिंतित और परेशान हुआ करते थे,  इसलिए ब्राह्मण उनसे चिढ़ा करते थे, एक दिन प्रह्लाद ब्राह्मण के लड़को के साथ जंगल मे मौज मस्ती करने गया हुआ था, उसकी बुआ होलिका उसका खाना लेकर जंगल मे गइ लेकिन वहा प्रह्लाद नही मिला,  लेकिन वहा ब्राह्मणों के लड़के मिल गए उन लोगो ने उसके साथ बलात्कार किया, और कहा कि इस मामले को यदि हिरण्यकश्यप को बताएगी तो हमलोग तुम्हे जान से मार देंगे लेकिन होलिका बोली की हम अपने भाई को बताएंगे कि तूम लोगो ने मेरे साथ बलात्कार किया है,।  तो इतना सुनकर स्वर्ण के लड़को...

संस्कृत बहुत पुरानी भाषा है या मोर्य वंश

 तर्कशील लोगों को छोड़कर अधिकांश डिग्रीधारी की मान्यता :- #संस्कृत बहुत पुरानी भाषा है या मोर्य वंश के बाद यूनानी शासक और गुप्त शासक द्वारा संस्कृत भाषा का उपयोग किया जाने लगा था। क्या यह प्रामाणिक है? इसको समझने के लिए एक शब्द धम्म को लीजिये।  सम्यक संस्कृति में धम्म का अर्थ प्रकृति, मनुष्य और सभी चेतनशील प्राणी के गुण स्वभाव को #धम्म कहा जाता था।  जिस धम्म को संस्कारित करने पर संस्कृत में धर्म लिखा जाता है और बोला जाता है।  परंतु सामन्ती संस्कृति में धर्म का अर्थ एक प्रकार का कर्मकांड और पूजा विधि की परंपरा को कहा जाता है। अब मुख्य बात पर आते हैं - धम्म को संस्कृत में धर्म जब लिखा जाता है तो मोर्य काल के बाद यवन, कुषाण, गुप्त जैसे आरोपित सम्राट द्वारा भी इस धम्म का लेखन संस्कृत शब्दावली अनुसार धर्म लिखना चाहिए था लेकिन ऐसा नही है। नीचे मौर्यकाल का अभिलेख सहित यवन काल, कुषाण काल और गुप्त काल का अभिलेख लगा है , जिस अभिलेख में सबों ने धम्म को धम्म ही लिखा है। किसी ने भी उस धम्म को संस्कारित भाषा मे धर्म नही लिखा है। इससे साफ जाहिर होता है कि यह सारा आरोप धूर्तों द्वारा...