सवर्ण हिंदुओं की आज भी मान्यता है कि दलितों ने कभी मरे जानवरों जैसे गाय, बैल, भैंस आदि का मांस खाया इसलिए वे व्यवस्था से वंचित और घृणित हुये।
हालांकि ऐसे लोग यह समझने में आज भी नाकाम है कि आदिमानव मांस खाकर ही जिंदा रहे आधुनिक मनुष्य ने लगभग 10 हजार वर्षों में ही खेती करना सीखा है। उससे पूर्व मांस भक्षण ही चारा था लेकिन वे यह समझने में नाकाम है कि सृष्टि की रचना नहीं हुई बल्कि विकासक्रम में निर्माण हुआ है।
उससे भी बड़ी बात यह है कि मनुष्य पहले सबकुछ खाता था और धीरे धीरे वह अत्याचारी, निरंकुश, क्रूर तथा अराजक हो गया। जिसके चलते बुद्ध ने अहिंसा का सिद्धांत प्रतिपादित कर जानवरों पर हिंसा, क्रूरता हेतु दया जताई और मरे मांस के भक्षण को ही उचित कहा। बुद्ध के इस सिद्धांत से लोग प्रभावित हुये और अहिंसा को प्रत्येक व्यक्ति ने आत्मसात किया गया तथा मांसाहार बहुत कम हो गया और जीवदया अधिक बढ़ गई थी।
इस सिद्धान्त के बदले ब्राह्मणों ने दोहरी क्रांति करते हुये पूर्ण शाकाहार का सुझाव लाते हुए इसे धर्म मे प्रतिपादित किया और वे शाकाहार में और अधिक सफल हुये। यहीं से पूर्ण शाकाहारी सिद्धांत की नींव पड़ी। बहरहाल! इस क्रम को सभी हिन्दू कभी खुलकर स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि फिर सबकुछ डगमगा जायेगा पर मैंने जैसा शुरू में कहा कि सवर्ण हिंदुओं की आज भी मान्यता है कि उनके पूर्वजों ने मरे जानवरों का मांस खाया खासकर गोमांस जिसके चलते वे धर्म में भ्रष्ट व घृणित, वंचित हुए।
असली बात यह कि स्वामी विवेकानंद ने जो कहा कि "जो गोमांस नहीं खाता था वह सच्चा हिन्दू नहीं माना जाता था" इस बात अथवा समय से भी लोग अनभिज्ञ है। वे विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने सृष्टि रची और प्रत्येक जीव जंतु रचे फिर सबकुछ सामने था लेकिन अछूतों ने पूज्यनीय गाय का भक्षण किया जिससे उन्होंने धर्म भी अपवित्र किया और वे भी अशुद्ध हो गये। पाप के भागीदार हुये और यह पाप सदियों तक भोगना पड़ेगा।
दुसरी तरफ़ हैं मुस्लिम। मुसलमानों का दलितों के प्रति घृणित नजरिया केवल हिन्दू होना या गंदगी ढोना नहीं था बल्कि उनकी मान्यता कि अल्लाह ने धरती बनाई, मनुष्य बनाये, जीव जंतु बनाये लेकिन इनमें कुछ जंतुओं को मनुष्य के खाने योग्य नहीं बनाया जिनमें से एक है सुअर। अछूतों ने सुअर खाया इसलिये यह वर्ग अल्लाह की नज़र में नापाक है। कुलमिलाकर हिंदू और मुसलमानों की नजर में दलित खानपान की वजह से घृणित है।
ईसाई इन दोनों वर्गों के जैसे नहीं सोचते थे। हालांकि सृष्टि रचना का सिद्धांत उनका भी यही है कि गॉड ने सब बनाये पर खानपान को उन्होंने सीमित नहीं किया। दुनिया में क्या क्या खाया जा सकता है यह अविष्कार ही ईसाइयों का अधिक रहा। मगर ईसाइयों ने घृणा का विषय रंग चुना। काले और गोरे दोनो का ईश्वर व धर्म समान था लेकिन रंग तथा नस्ल के आधार पर उन्होंने भी मनमर्जी की। यही नस्लीय सिद्धान्त यहूदियों, पारसियों आदि में भी था।
हां जैन, बौद्ध, सिख इन सिद्धांतों से अलग थे इनमें मनुष्य को किसी भी आधार पर वंचित नहीं रखा गया पर पद, पैसे, कार्य और अवसर ने इन्हें भी वर्गीकरण तथा घृणित विचारों से भिन्न नहीं रखा। निष्कर्ष यह है कि विज्ञान, काले को गोरा, संविधान गरीब व गरीब को अमीर तथा शिक्षा अज्ञानी को ज्ञानी बना सकता है और शिक्षा, संविधान व विज्ञान मिलकर यह साबित कर सकते हैं कि धर्म की तमाम मान्यताएं व्यर्थ है आप कुछ भी खाओ, पहनो, दिखो लेकिन जीवन केवल शांति और प्रेम में हैं। #आर_पी_विशाल।
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