लगभग 1 वर्ष पूर्व पार्ले बिस्किट कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने कहा था कि नकदी के संकट से जूझ रहे ग्रामीण लोग 5 रुपए का पार्ले जी का पैकेट भी नहीं खरीद पा रहे है. मांग काफी घट गई है. अब अचानक ऐसा समय आया कि बिहार के सीतामढ़ी में पार्ले जी बिस्किट की मांग इतनी बढ़ गई कि स्टाक ही खत्म हो गया. इसके पीछे अफवाह और अंधविश्वास ने काम किया. मार्केटिंग का ऐसा तरीका तो कंपनी ने भी सोचा न होगा.
हुआ यों कि सीतामढ़ी में जितिया पर्व से जोड़कर अफवाह फैलाई गई कि घर में जितने भी बेटे हैं, उन सबको पार्ले जी बिस्किट खाना है नहीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है. माताएं अपने पुत्र की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए यह व्रत करती हैं. इस अफवाह की वजह से पार्ले जी बिस्किट खरीदने दुकानों में भीड़ उमड़ पड़ी और देखते ही देखते इस बिस्किट का स्टाक खत्म हो गया.
भावुक और भावनाप्रधान महिलाओं ने यह भी नहीं सोचा कि किसी धर्म-शास्त्र या परंपरा में पार्ले जी बिस्किट खाने का उल्लेख ही नहीं है. भारत में पहले कभी ब्रेड, बिस्किट, टोस्ट थे ही नहीं. अंग्रेजी हुकूमत में ये चीजें देश में शुरू हुईं. फिर धर्म या त्योहार से बिस्किट का क्या संबंध? वास्तव में लोग कान के कच्चे रहते हैं और एक दूसरे का अंधानुकरण करते हैं. तर्क बुद्धि भूलकर भेड़ चाल चलने लग जाते हैं.
समय समय में भगवान की मूर्तियां दूध भी पीती रहती हैं। लगभग 25 वर्ष पहले ऐसे ही गणेश प्रतिमाओं के दूध पीने की अफवाह सारे देश में फैली थी. बड़ी तादाद में लोग अपने घरों से कटोरी में दूध और चम्पच लेकर गणेश मंदिर पहुंचने लगे थे. तब वैज्ञानिकों ने बताया था कि पत्थर की मूर्ति दूध पी ही नहीं सकती. यह कैपिलरी एक्शन है जिसमें भ्रम होता है कि मूर्ति दूध पी रही है. धार्मिक क्षेत्रों ने यह भी नहीं सोचा कि गणेश को तो मोदक या लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है, दूध से उनका क्या वास्ता! अपने देश में ऐसी पोंगापंथी बहुत चलती है जिसमें लोग आंख मूंद कर अफवाहों पर विश्वास करते हैं. किसी ने कहा कि कौआ कान ले गया तो कान टटोलकर देखने की बजाय कौए के पीछे दौड़ेंगे।
कभी तर्क और विवेक का इस्तेमाल नहीं करते।
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