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चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर

 चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर


*इटारसी*। सतपुड़ा के जंगलों के बीच तवा बांध की तलहटी किनारे मौजूद राजा चमरदल का ऐतिहासिक किला पुरातत्व विभाग एवं सरकार की उपेक्षा का शिकार है। प्राचीनकाल के गौरवशाली इतिहास एवं चमरदल वंश की यादों को समेटे खड़े इस किले को पर्यटन के नक्शे पर जीवंत कर इसे अच्छा हैरीटेज बनाया जा सकता है, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यह किला नक्शे से ही गायब है। इस मामले में अहिरवार समाज के कार्यकर्ता अब आगे आए हैं और इस धरोहर को बचाने के लिए मुहिम शुरू करने जा रहे हैं।

*क्या है प्राचीन इतिहास*



इतिहास के जानकार बताते हैं कि तवा नदी पर जहां तवा बांध मौजूद है। उसके पास मेन केनाल नहर के दाईं ओर करीब 20 एकड़ जमीन पर चमरदल राजा का किला मौजूद है, जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते खंडहर में तब्दील हो चुका है। महल के समीप पानी के कुंड एवं बाबड़ी बनी हुई है जो लगभग 50 फीट गहरी थी और रखरखाव न होने से अब विलुप्त हो रही है। प्राचीन बावड़ी के समीप अंदर स्नान कुंड था जहां रानियां स्नान किया करती थीं। इसी कुंड से एक गुप्त रास्ता था जो तवा नदी के उस पार जाता था। नदी के दूसरे पार भी महल व चमाराज्य के अन्य भवन बने हुए हैं अब जिनके अवशेष बचे हैं। चमार राजा ने इस क्षेत्र में लंबे समय तक राज किया था। 400 से 500 वर्ष पहले राजा ने अपने राज्य में चमड़े के नोट व सिक्के चलाए थे, जो राज्य क्षेत्र था उसे चौबीस कहते थे, जिनके अंतर्गत सनखेड़ा सोमलवाड़ा, घांटली गुर्रा सिलारी से सोनतलाई, बिछुआ, मरोड़ा के बीच लगभग 24 गांव रियासत में शामिल थे, इसलिए इसे चौबीसा कहते थे। इन्ही गांव मे मथरे राजा जी के चबूतरे बने इनकी पूजा होती है व उनके वंशज भी रहते है ।

*पारसमणी का जिक्र भी*

किदवंतियों से पता चलता है कि रानी के पास पारसमणि पत्थर था। यदि वह पत्थर लोहे को छू ले तो पारस बन

जाता था तो राजा उस समय लगान के रूप में किसानों से उनके हसिए दातरा लिया करते थे और उसे पारसमणि पत्थर से छूकर पारस बनाते थे। पारसमणि की जानकारी उस समय के लुटेरों को लगी तो उन्होंने राज्य पर हमला कर राजा की हत्या कर दी। रानी ने अपनी जान बचाने के लिए पारसमणि पत्थर लेकर नदी में छलांग लगा दी, लेकिन रानी का कभी पता नहीं लगा सका। जिस जगह रानी नदी में कूदी थी उस जगह पानी बहुत गहरा था और

आज भी बहुत गहरा है। बुर्जुग बताते है कि गहराई इतनी है जितनी एक खाट में रस्सी बुनते हैं। उसके बीस गुना पारसमणि ढूंढने के लिए नदी में लोहे की बढ़ी जंजीर हाथी के पैरों में बांधकर खिंचवाई गई पर लुटेरों को पारसमणि नसीबत नहीं हुई।


रविदास वंश के युवा चाहते हैं कि उनके वंश के चर्चित राजा की इस अहम निशानी को सरकार सहेजने का प्रयास करे। इस जगह संत रविदास की प्रतिमा स्थापित कर किले का जीर्णोद्धार कर इसे हैरीटेज के रूप में विकसित किया जाए। यह जगह अभी वन भूमि में आती है और यहां शानदार पर्यटन स्थल भी विकसित किया जा सकता है। इतिहासकार इस स्थल पर रिसर्च भी कर सकते हैं। रविदास वंश के *इंजीनियर अजय अहिरवाल व* अन्य साथीयो ने किले का निरीक्षण करने के बाद कहा कि हम जल्द ही इस मामले में पर्यटन मंत्री एवं सीएम शिवराज सिंह चौहान जी से चर्चा करेंगे 


*तवा रिसोर्ट से जुड़ाव*

खास बात यह है कि पर्यटन विभाग का बड़ा पिकनिक स्पॉट तवा रिसोर्ट इसी जगह पर पर्यटन विभाग विकसित कर चुका है। यहां हजारों सैलानी पहुचंते हैं। यदि इस किले को संवारा जाए तो हजारों सैलानी इस ऐतिहासिक।

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