Skip to main content

क्या बौद्ध, जैन और सिख धर्म हिन्दू धर्म से निकले है?

क्या बौद्ध, जैन और सिख धर्म हिन्दू धर्म से निकले है?

मनुवादी हमेसा कहते है कि ये बौद्ध धम्म, जैन धर्म और सिख धर्म हिन्दू धर्म से निकले है
ये सही नहीं है बल्कि ये हिन्दू धर्म के विरुद्ध खड़े हुए थे
आइए विशलेषण करते है
श्रमण धर्म से मुख्यतः दो धर्म निकले एक बौद्ध दूसरा जैन
धर्म जिनके सबूत हमे
Indus valley civilization मे भी मिलते है
बुद्ध और महावीर दोनों की विचारधारा हिन्दू यानी उस समय के सनातन धर्म से भिन्न थी
बुद्ध के समय भारत मे 62 धार्मिक विचार धारा थी उसमे से एक और विख्यात थी चार्वाक के नास्तिकता का सिद्धांत,
बल्कि बौद्ध धम्म तो 100% विरुद्ध था यज्ञ कर्म कांड पाखंड वर्ण व्यव्स्था और वर्ण श्रम की तो धज्जियाँ उड़ा दिया था बुद्ध ने

अब आते है मध्य कालीन भारत मे
गुरु नानक देव ने भी बुद्ध और महावीर की तरह भिन्न धर्म की स्थापना इस लिए कि ताकि कर्मकांड, पाखंड,भेद भाव और असमानता को खत्म किया जाये.

जैसा कि मनुवादी धूर्तता फैलते है कि ये सारे धर्म हिन्दू धर्म से निकले है ये हिन्दू धर्म से नहीं निकले बल्कि उसके विरोध मे खड़े हुए थे

हिन्दू धर्म से निकले का मतलब है कि उसके जैसी विचारधारा का होना जबकि ईन तीनों की विचारधारा भिन्न है बौद्ध और सिख की खास तौर से

हिन्दू धर्म से निकला है आर्य समाज जोकि कहने को आज के हिन्दू धर्म के विरुद्ध है पर उसका ज़द मूल् वेद पुराण ही है.
बल्कि आर्य समाज की स्थापना दयानंद सरस्वती ने इसलिए कि थी कि हिन्दू धर्म के निम्न वर्ग के लोग सिख रहे थे.

इतिहास के पन्नों से

Comments

Popular posts from this blog

नास्तिक -चार्वाक ऋषि -- जगत सत्यम ब्रह्म मिथ्या!!

 4 नास्तिक -चार्वाक ऋषि -- जगत सत्यम ब्रह्म मिथ्या!!                  नास्तिक दर्शन भारतीय दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को कहा जाता है जो वेदों को नहीं मानते थे। भारत में भी कुछ ऐसे व्यक्तियों ने जन्म लिया जो वैदिक परम्परा के बन्धन को नहीं मानते थे वे नास्तिक कहलाये तथा दूसरे जो वेद को प्रमाण मानकर उसी के आधार पर अपने विचार आगे बढ़ाते थे वे आस्तिक कहे गये। नास्तिक कहे जाने वाले विचारकों की तीन धारायें मानी गयी हैं - चार्वाक, जैन तथा बौद्ध। . चार्वाक दर्शन एक भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है। वेदबाह्य दर्शन छ: हैं- चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत। इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। चार्वाक प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। ये नास्तिक मत के प्रवर्तक बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। बृहस्पति और चार्वाक कब हुए इसका कुछ भी पता नहीं है। बृहस्पति को चाणक्य न...

बौद्धों को मध्ययुगीन भारत में "बुद्धिस्ट-वैष्णव" (Buddho-Vaishnavas) क्यों बनना पडा था|

 बौद्धों को मध्ययुगीन भारत में "बुद्धिस्ट-वैष्णव" (Buddho-Vaishnavas)  क्यों बनना पडा था| अनेक लोग यह मानते हैं कि, सम्राट हर्षवर्धन और बंगाल के पाल सम्राटों के बाद भारत से बौद्ध धर्म खत्म हुआ था, लेकिन यह गलत है| मध्ययुगीन काल में भारत से बौद्ध धर्म खत्म नहीं हुआ था, बल्कि वह प्रछन्न वैष्णव धर्म के रूप में जीवित था|  ब्राम्हणों ने बौद्ध धर्म के खिलाफ भयंकर हिंसक अभियान सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु (सन 647) के बाद चलाया था| बौद्धों का खात्मा करने के लिए पाशुपत और कापालिक जैसे हिंसक शैव पंथ बनाए गए थे| आदि शंकराचार्य खुद शैव पंथी था और उसने बौद्ध विहारों पर कब्जा करने के लिए ब्राम्हणवादी साधुओं की खास सेना बनवाई थी, ऐसा प्रसिद्ध इतिहासकार तथा संशोधक जियोवान्नी वेरार्डी ने बताया है|  हिंसक शैवों ने बुद्ध के स्तुपों को और सम्राट अशोक के शिलास्तंभों को हिंसक युपों में तब्दील कर दिया था, जहाँ पर शेकडो प्राणियों की बलि दी जाती थी और बुद्ध के अहिंसा तत्व का खुलेआम विरोध किया जाता था| कुछ यज्ञों के युपों पर आज भी नीचे बुद्ध की मुर्ति दिखाई देती है| शैवों और बौद्धों के बीच चले ...

डॉ_अंबेडकर_और_करपात्री_महाराज

*डॉ_अंबेडकर_और_करपात्री_महाराज* *बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जब हिन्दू कोड बिल तैयार करने में लगे थे तब बनारस/कांशी के सबसे बड़े धर्मगुरु स्वामी करपात्री महाराज उर्फ हरिनारायण ओझा उर्फ हरिहरानन्द सरस्वती, जिन्होंने 'अखिल भारतीय रामराज्य परिषद' नामक एक राजनैतिक दल की स्थापना की थी जिसने 1952 में लोकसभा के प्रथम आम चुनाव में 03 सीटें जीतीं थी, ने बाबासाहेब को बहस करने की चुनौती दे डाली।*  *करपात्री ने कहा, "डॉ0 अम्बेडकर एक अछूत हैं वे क्या जानते हैं हमारे धर्म के बारे मे, हमारे ग्रन्थ और शास्त्रों के बारे में, उन्हें कहाँ संस्कृत और संस्कृति का ज्ञान है ? यदि उन्होंने हमारी संस्कृति से खिलवाड़ किया तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।"*  *करपात्री महाराज ने डॉ0 अम्बेडकर को इस पर बहस करने हेतु पत्र लिखा और निमंत्रण भी भेज दिया।*  *उस समय करपात्री महाराज दिल्ली में यमुना के किनारे निगम बोध घाट पर एक आश्रम में रहते थे।*  *बाबासाहेब बहुत शांत और शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने आदर सहित करपात्री महाराज को पत्र लिखकर उनका निमंत्रण स्वीकार किया और कहा कि ...