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बौद्धों को मध्ययुगीन भारत में "बुद्धिस्ट-वैष्णव" (Buddho-Vaishnavas) क्यों बनना पडा था|

 बौद्धों को मध्ययुगीन भारत में "बुद्धिस्ट-वैष्णव" (Buddho-Vaishnavas)  क्यों बनना पडा था| अनेक लोग यह मानते हैं कि, सम्राट हर्षवर्धन और बंगाल के पाल सम्राटों के बाद भारत से बौद्ध धर्म खत्म हुआ था, लेकिन यह गलत है| मध्ययुगीन काल में भारत से बौद्ध धर्म खत्म नहीं हुआ था, बल्कि वह प्रछन्न वैष्णव धर्म के रूप में जीवित था|  ब्राम्हणों ने बौद्ध धर्म के खिलाफ भयंकर हिंसक अभियान सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु (सन 647) के बाद चलाया था| बौद्धों का खात्मा करने के लिए पाशुपत और कापालिक जैसे हिंसक शैव पंथ बनाए गए थे| आदि शंकराचार्य खुद शैव पंथी था और उसने बौद्ध विहारों पर कब्जा करने के लिए ब्राम्हणवादी साधुओं की खास सेना बनवाई थी, ऐसा प्रसिद्ध इतिहासकार तथा संशोधक जियोवान्नी वेरार्डी ने बताया है|  हिंसक शैवों ने बुद्ध के स्तुपों को और सम्राट अशोक के शिलास्तंभों को हिंसक युपों में तब्दील कर दिया था, जहाँ पर शेकडो प्राणियों की बलि दी जाती थी और बुद्ध के अहिंसा तत्व का खुलेआम विरोध किया जाता था| कुछ यज्ञों के युपों पर आज भी नीचे बुद्ध की मुर्ति दिखाई देती है| शैवों और बौद्धों के बीच चले इस भयंकर
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प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 डॉ #आंबेडकर का वो भाषण जिसने अंग्रेजों को हिला दिया था

 प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 डॉ #आंबेडकर का वो भाषण जिसने अंग्रेजों को हिला दिया था..... भारतीयों को स्वशासन देने, संवैधानिक प्रक्रिया के विकास के लिए #गोलमेज_सम्मेलन बुलाये जो क्रमशः- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 ,द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1931 तथा तृतीय गोलमेज सम्मेलन 1932 में इंग्लैंड में आयोजित किये गए. डॉ भीमराव #अम्बेडकर (बाबा साहब) देश के करोड़ों #वंचितों और #दलितों के प्रतिनिधि के रूप में गोलमेज सम्मेलन में सरीख हुए थे. प्रथम गोलमेज सम्मेलन में डॉ #आंबेडकर के भाषण ने #कांग्रेस तथा #कट्टरपंथी_हिंदुओं के रोंगटे खड़े कर दिए थे। उन्होंने हिंदुस्तान में #जातिवाद और #हिंदुपन्न कि जो पोल लन्दन गोलमेज सम्मेलन में खोली ,ब्रिटिश सरकार को डॉ आंबेडकर जी की हर एक बात माननी पड़ी। ये डॉ आंबेडकर (बाबा साहब) का ही #हुनर और #संघर्ष था कि ,उन्होंने रैमजे मैकडोनाल्ड को कम्युनल अवार्ड स्वीकार करने को मजबूर कर दिया था। 4 अक्टूबर 1930 को ‘वायसराय ऑफ इंडिया, नामक जहाज से डॉक्टर #अंबेडकर लंदन को रवाना हुए, परंतु #कांग्रेस नहीं चाहती थी कि उन नेताओं के माध्यम से जो उन्हें मान्य नहीं है, उनसे #ब्रिटिश_सरकार भारत की

⚡ *पेरियार ने पत्नी का ह्रदय परिवर्तन किया !*💫

 ⚡ *पेरियार ने पत्नी का ह्रदय परिवर्तन किया !*💫          तमिलनाडू के क्रांतीकारी महामानव *पेरियार रामास्वामी नायकर* का विवाह होने के पश्चात जब उनकी पत्नी *नागम्मई* दुल्हन बनकर ससुराल आई, तो उन के सामने दो संस्कृतियों का संगम था! अन्धविश्वास की सौगात उन्हे नैहर और ससुराल में विरासत के रुप में मिली थी।              👱‍♀ अपने पति का धर्म के प्रति चिंतन ने उन्हें भी सोचने पर बाध्य कर दिया । वे दो पाटो में पिसी जा रही थी। 🙇‍♀ 👉 दशहरा जैसे जुलूशों पर जब भारत की जनता ताजियों की तरह *रावण* के पुतले हिन्दू धर्म के अनुसार दफनाते या जलाते थे तो पेरियार *राम* का पुतला जलाते थे। 👊          🤦🏻‍♀ माता नागम्मई को प्रारम्भ में यह देखकर बहुत बुरा लगता था पर पेरियार जब अपनी पत्नी को समझाते कि अगर... ➡ *हम तुम्हे गर्भावस्था में जंगल में छोड़ दे तो क्या तुम फिर भी हमारी ही पूजा करोगी?*  ➡ *अगर हम तुम्हे जुए के दांव पर लगा कर हार जाये तो क्या तुम फिर भी हमे धर्मराज कहोगी?*  ➡ *अगर हमारे पांच भाई होते और तुम उन सब की बारी बारी से पत्नी बनती, तो क्या तुम्हें गीता पर अडिग विश्वास रहता?*  ➡ *मैं अगर दशरथ य

जाति का विनाश Dr Br Ambedkar

 जाति का विनाश : मनु और याज्ञवल्क्य के ब्राह्म्णवादी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए एक जरूरी किताब डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि “आपको यह नहीं भूलनी चाहिए कि यदि आपको इममें (जाति व्यवस्था) एक दरार बनानी है तो आपको तर्क न मानने वाले और नैतिकता को नकारने वाले वेदों व शास्त्रों को बारूद से उड़ा देना होगा। श्रुति और स्मृति के धर्म को खत्म करना होगा”। जाति के विनाश उनका आह्वान आज भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पहले। सिद्धार्थ का विश्लेषण : THIS ARTICLE IN ENGLISH जिस चीज ने भारतीय समाज तथा भारतीय आदमी, विशेषकर हिंदुओं के बहुलांश हिस्से को भीतर से संवेदनहीन, न्यायपूर्ण चेतना से रहित और अमानवीय, बना दिया, वह है, जातियों पर आधारित सामाजिक व्यवस्था। यह हमें रोज ब रोज अतार्किक, विवेकहीन, कायर, पाखण्डी-ढोंगी और आत्मसम्मानहीन बनाता है तथा व्यक्ति के आत्मगौरव और मानवीय गरिमा को क्षरित करता है। जाति- व्यवस्था ने एक ऐसा श्रेणी-क्रम रचा, जिसमें हर आदमी किसी दूसरे आदमी की तुलना में नीच है। इसने श्रम न करने वाले परजावियों को महान तथा मेहनत करने वालों को नीच तथा महानीच बना दिया। श्रम तथा श्रम करने वालों को इतना घृ

चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर

 चमड़े के नोट व सिक्के चलाने वाले चमरदल के राजा की ऐतिहासिक धरोहर हो रही जर्जर *इटारसी*। सतपुड़ा के जंगलों के बीच तवा बांध की तलहटी किनारे मौजूद राजा चमरदल का ऐतिहासिक किला पुरातत्व विभाग एवं सरकार की उपेक्षा का शिकार है। प्राचीनकाल के गौरवशाली इतिहास एवं चमरदल वंश की यादों को समेटे खड़े इस किले को पर्यटन के नक्शे पर जीवंत कर इसे अच्छा हैरीटेज बनाया जा सकता है, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यह किला नक्शे से ही गायब है। इस मामले में अहिरवार समाज के कार्यकर्ता अब आगे आए हैं और इस धरोहर को बचाने के लिए मुहिम शुरू करने जा रहे हैं। *क्या है प्राचीन इतिहास* इतिहास के जानकार बताते हैं कि तवा नदी पर जहां तवा बांध मौजूद है। उसके पास मेन केनाल नहर के दाईं ओर करीब 20 एकड़ जमीन पर चमरदल राजा का किला मौजूद है, जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते खंडहर में तब्दील हो चुका है। महल के समीप पानी के कुंड एवं बाबड़ी बनी हुई है जो लगभग 50 फीट गहरी थी और रखरखाव न होने से अब विलुप्त हो रही है। प्राचीन बावड़ी के समीप अंदर स्नान कुंड था जहां रानियां स्नान किया करती थीं। इसी कुंड से एक गुप्त रास्ता था जो तवा नदी के

सबको पार्ले जी बिस्किट खाना है नहीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है.

 लगभग 1 वर्ष पूर्व पार्ले बिस्किट कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने कहा था कि नकदी के संकट से जूझ रहे ग्रामीण लोग 5 रुपए का पार्ले जी का पैकेट भी नहीं खरीद पा रहे है. मांग काफी घट गई है. अब अचानक ऐसा समय आया कि बिहार के सीतामढ़ी में पार्ले जी बिस्किट की मांग इतनी बढ़ गई कि स्टाक ही खत्म हो गया. इसके पीछे अफवाह और अंधविश्वास ने काम किया. मार्केटिंग का ऐसा तरीका तो कंपनी ने भी सोचा न होगा. हुआ यों कि सीतामढ़ी में जितिया पर्व से जोड़कर अफवाह फैलाई गई कि घर में जितने भी बेटे हैं, उन सबको पार्ले जी बिस्किट खाना है नहीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है. माताएं अपने पुत्र की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए यह व्रत करती हैं. इस अफवाह की वजह से पार्ले जी बिस्किट खरीदने दुकानों में भीड़ उमड़ पड़ी और देखते ही देखते इस बिस्किट का स्टाक खत्म हो गया. भावुक और भावनाप्रधान महिलाओं ने यह भी नहीं सोचा कि किसी धर्म-शास्त्र या परंपरा में पार्ले जी बिस्किट खाने का उल्लेख ही नहीं है. भारत में पहले कभी ब्रेड, बिस्किट, टोस्ट थे ही नहीं. अंग्रेजी हुकूमत में ये चीजें देश में शुरू हुईं. फिर धर्म या त्योहार से बिस्किट

"सही और गलत"

 "सही और गलत" सही और गलत कुछ भी ऊपर से बन कर नहीं आता, सही और गलत हम खुद और हमारा समाज ये मिलकर निर्धारित करते हैं, जैसे किसी के लिए मास खाना गलत है और किसी के लिए सही है, मास खाना सही बताने वाले को एहसास भी नही होता कि वो गलत है, आज से पहले राजा महाराजा एक से ज्यादा शादिया करते थे, और उनकी पत्नियों को भी कोई आपत्ति नहीं होती थी, क्योंकि उस समय पर समाज ने इसे सही निर्धारित कर रखा था, जैसे एक सैनिक किसी दूसरे देश के सैनिक को मारे तो वो सही है, क्योंकि हमारा देश उसे सही ठहराता है, वही अगर दूसरी जगह कोई दूसरा इंसान किसी व्यक्ति को मारे, चाहे फिर वो मरने वाला व्यक्ति कितना भी बुरा ही क्यूं ना हो, पर हमारा देश ये स्विकार नहीं करता, इसलिय मारने वाले व्यक्ति को अपनी गलती की सजा भुगतनी पड़ती है, पुराने समय में जो हुआ वो सही था, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि समय के साथ हमारी सोच बदलती रहती है, हां ये कहा जा सकता है, कि उस समय उनके लिए शायद वही सही था, जैसे पुराने समय से हमें बताया गया है कि कोई ईश्वर है जो हम से ऊपर है और वही मानव को पाप और पुण्य के हिसाब से सजा देता है, तब कोई भी मान