प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 डॉ #आंबेडकर का वो भाषण जिसने अंग्रेजों को हिला दिया था.....
भारतीयों को स्वशासन देने, संवैधानिक प्रक्रिया के विकास के लिए #गोलमेज_सम्मेलन बुलाये जो क्रमशः- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 ,द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1931 तथा तृतीय गोलमेज सम्मेलन 1932 में इंग्लैंड में आयोजित किये गए. डॉ भीमराव #अम्बेडकर (बाबा साहब) देश के करोड़ों #वंचितों और #दलितों के प्रतिनिधि के रूप में गोलमेज सम्मेलन में सरीख हुए थे.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में डॉ #आंबेडकर के भाषण ने #कांग्रेस तथा #कट्टरपंथी_हिंदुओं के रोंगटे खड़े कर दिए थे। उन्होंने हिंदुस्तान में #जातिवाद और #हिंदुपन्न कि जो पोल लन्दन गोलमेज सम्मेलन में खोली ,ब्रिटिश सरकार को डॉ आंबेडकर जी की हर एक बात माननी पड़ी। ये डॉ आंबेडकर (बाबा साहब) का ही #हुनर और #संघर्ष था कि ,उन्होंने रैमजे मैकडोनाल्ड को कम्युनल अवार्ड स्वीकार करने को मजबूर कर दिया था।
4 अक्टूबर 1930 को ‘वायसराय ऑफ इंडिया, नामक जहाज से डॉक्टर #अंबेडकर लंदन को रवाना हुए, परंतु #कांग्रेस नहीं चाहती थी कि उन नेताओं के माध्यम से जो उन्हें मान्य नहीं है, उनसे #ब्रिटिश_सरकार भारत की समस्याओं पर बातचीत कर समाधान कर सके, प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कुल 89 प्रतिनिधियों सामिल हुए थे।
इस सम्मेलन में #कांग्रेस ने प्रतिभाग नहीं किया था, इस सम्मेलन में 13 प्रतिनिधि ब्रिटिश सरकार के तथा 76 सदस्य भारतीय #रियासतों, #राजनीतिक दलों, #अल्पसंख्यक समुदायों, तथा #दलितों के प्रतिनिधि सामिल थे ।
प्रथम गोलमेज परिषद में भारत के #अछूतों के #प्रतिनिधि के रूप में बाबा साहेब ने इन शब्दों से अपना भाषण शुरू किया था-‘मैं जिन अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में यहां उपस्थित हुवा हूँ, उनकी संख्या हिंदुस्तान की कुल जनसंख्या का पांचवा भाग है अर्थात ब्रिटेन और फ्रांस की कुल जनसंख्या के बराबर है. ऐसे भारत की कुल जनसंख्या के 5वें भाग के लोगों के प्रतिनिधित्व की हैसियत से मैं यहां आया हूं .जिन की दशा #गुलामों से भी बदतर है और घृणित और पशुवत जीवन-यापन कर रहे हैं।
#गुलामों के मालिक भी गुलामों को छूते थे, परंतु हमें छूना भी पाप समझा जाता है. वह सदियों से शोषित हैं और उपेक्षित होता आ रहा है. सरकार बदली राज्य बदले परंतु दलितों का भाग्य बद से बदतर होता चला गया. ब्रिटिश सरकार से पहले #अस्थिरता के कारण हम घृणित अवस्था में थे ब्रिटिश सरकार ने हमारी हालत सुधारने के लिए क्या कुछ किया?
पहले हम गांव के #कुएं से पानी नहीं भर सकते थे आज भी वही स्थिति है. गांव के कुएं से पानी तक नहीं पी सकते हैं.क्या ब्रिटिश सरकार ने हमें वह अधिकार दिलाया? ब्रिटिश राज्य से पूर्व हम #मंदिरों में नहीं जा सकते थे और आज भी मंदिरों के द्वार हमारे लिए बंद है. फिर ब्रिटिश सरकार ने हम #अछूतों के #अधिकार के लिए क्या किया ? पहले हमें #पुलिस विभाग में भर्ती नहीं किया जाता था क्या अब ब्रिटिश सरकार हमें पुलिस में भर्ती करती है ? पहले भी हमें #सैनिक सेवा में भर्ती नहीं किया जाता था क्या अब #सेना में सेवा करने का मौका दिया जाता है?
प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अपने तेजस्वी #भाषण को जारी रखते हुए डॉ भीमराव #अंबेडकर ने औपनिवेशिक #स्वराज्य की मांग का समर्थन किया और ऊंच-नीच के भेदभाव पूर्ण हिंदू समाज की पद्धति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में एक ऐसे खास विधान की जरूरत है जिससे प्रतिकूल परिस्थिति में भी अछूत समाज उन्नति कर सकें।
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