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Showing posts from June, 2020

क्या बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म के बाद जन्मा है?

संस्कृत व्याकरण के विद्वान् पतंजली 150 BCE में अपने ग्रन्थ महाभाष्य में लिखते हैं: “आर्यों की भूमि कौनसी है? यह सरस्वती नदी से पूर्व में है. कालक वन के पश्चिम हिमालय के दक्षिण और परियत्र पर्वत  के उत्तर में” इसका सीधा अर्थ है कि पतंजली के समय में आर्यावर्त (आर्यभूमि) की एक पूर्वी सीमा थी जिसके परे कोई अन्य सभ्यता या धर्म था. पतंजली के चार शताब्दी बाद मानव धर्म शास्त्र में मनु लिखते हैं  “हिमालय और विन्ध्य के बीच प्रयाग पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र के बीच आर्यावर्त भूमि है”   इसका अर्थ हुआ कि चार शताब्दी बाद पतंजली के लिए जो प्रदेश पूर्व में था वह मनु के लिए मध्यदेश बन जाता है. अर्थात यह क्षेत्र आर्यों द्वारा जीत लिया जाता है. आर्यभूमि के प्रसार के लिए रास्ता अग्नि और यग्य द्वारा बनाया गया इसका अर्थ हुआ ये लोग जंगल जलाते हुए और युद्ध करते हुए आगे बढ़े. मतलब साफ़ है, मनु तक आते आते वह पूर्वी प्रदेश जो आर्यों का नहीं बल्कि असुरों का था वह आर्यों द्वारा जीत लिया जाता है. पतंजली वर्णित कालक वन मनु द्वारा वर्णित प्रयाग या वर्तमान इलाहाबाद के निकट है.पतंजली महाभाष्य के ही ...

एक तरफ तो फैक्ट्रियों में काम चल रहा था और कामगार काम से दुखी थे,

जो 70 साल से परेशान थे, “अच्छे दिनों वाली शासन के 6 साल, बेमिसाल-रिपोर्ट” जरूर पढ़ें। पढ़ते जाये, आँखें खुलती जाएँगी। सन 2014 से पहले तक इतिहास का वो दौर था जब हम भारत के  लोग "बहुत ही दुखी" थे। एक तरफ तो फैक्ट्रियों में काम चल रहा था और कामगार काम से दुखी थे, अपनी मिलने वाली पगार से दुखी थे। सरकारी बाबू की तन्ख्वाह समय समय पर आने वाले वेतन आयोगों से बढ रही थी। हर 6 महीने या साल भर में 10% तक के मंहगाई भत्ते मिल रहे थे, नौकरियां खुली हुईं थीं। अमीर, गरीब, सवर्ण, दलित, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबके लिये यूपीएससी था, एसएससी था, रेलवे थी, बैंक की नौकरियां थीं। प्राईवेट सेक्टर उफान पर था।मल्टी नेशनल कम्पनियां आ रहीं थी, जाॅब दे रहीं थीं। हर छोटे बडे शहर में ऑडी और जगुआर जैसी कारों के शो रूम खुल रहे थे। हर घर मे एक से लेकर तीन चार अलग अलग माॅडलो की कारें हो रही थीं। प्रॉपर्टी मे बूम था। नोयडा से पुणे, बंगलौर तक, कलकत्ता से बम्बई तक फ्लैटों की मारा-मारी मची हुई थी। महंगे बिकते थे फ़िर भी बुकिंग कई सालों की थी। मतलब हर तरफ, हर जगह अथाह दुख ही दुख पसरा हुआ था। लोग नौकरी मिलने से, तन्...

नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज

नीरा आर्य की कहानी।  जेल में जब  स्तन काटे गए ! आज मै उनकी आत्मकथा पढ रही थी  तो मुझे लगा कि आप सब के बीच इसको रखुं ।  नीरा आर्य (1902 - 1998) की संघर्ष पूर्ण जीवनी: नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी ।।  नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।। इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है।  |  आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई।  आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।। नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है , इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -  ‘‘मैं जब कोलकाता जेल...

आखिर भारत में क्यों नहीं होता जातीय भेद और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ अमेरिका जैसा प्रतिरोध

*आखिर भारत में क्यों नहीं होता जातीय भेद और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ अमेरिका जैसा प्रतिरोध?* अमेरिका की तस्वीरें अखबारों और सोशल मीडिया पर पूरी दुनिया ने देखी हैं। निजी तौर पर अमेरिका और उसका कथित जनतंत्र अपन जैसे लोगों की कभी पसंद नहीं रहे। पर भारत से तुलना करते हैं तो अमेरिकी समाज वाकई तरक्की-पसंद नजर आता है। उस समाज के दामन पर रंगभेद के दाग़ अब भी हैं पर शायद उनका रंगभेद हमारी ब्राह्मणवादी-वर्णव्यवस्था के सामने अब कहीं नहीं ठहरता। रंगभेद के खिलाफ वहां सदियों की लड़ाइयों का इतिहास है। पर भारत में अगर दक्षिण के केरल और तमिलनाडु आदि जैसे कुछ इलाकों को छोड़ दें तो वर्ण व्यवस्था और सवर्ण-सामंती वर्चस्व के विरुद्ध समाज-सुधार की लड़ाइयां देश के बड़े हिस्से में नहीं लड़ी जा सकीं और इस तरह भारत संवैधानिक रूप से ‘जनतंत्र’ लागू करने के ऐलान के बावजूद एक समावेशी और जनतांत्रिक समाज में तब्दील नहीं हो सका। अन्याय, गैर-बराबरी और उत्पीड़न के डरावने उदाहरणों के बावजूद अमेरिकी समाज में भारत जैसी नफ़रती हिंसा, वर्ण-वर्चस्व से प्रेरित सामूहिक जनसंहार, आगजनी और सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएं या उन पर...

रामायण और राम की ऐतिहासिक पड़ताल ब्लॉग

रामायण और राम की ऐतिहासिक पड़ताल ब्लॉग रामायण और राम की ऐतिहासिक पड़ताल       रामायण और महाभारत एक काल्पनिक साहित्य रचना है, न कि कोई इतिहास की गाथा. पर हम यह भी जानते हैं कि कोई भी रचना वगैर वस्तु केन्द्रित नहीं हो सकती है अर्थात्, कल्पना की उड़ान भी वस्तु की तुलना में ज्यादा ऊंची नहीं उड़ सकती. यही कारण है कि रामायण और महाभारत की कोई भी ऐतिहासिक तथ्य सीधे तौर पर नहीं मिल सकी. पर इतिहास खुद को हमेशा साबित करता है, चाहे वह कल्पना की कितनी भी उंची उड़ान क्यों नहीं हो. विगत दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इसी एक जानकारी को हम यहां अपने पाठकों को देना चाहेंगे. सोशल मीडिया व्हाट्सअप के द्वारा वायरल हो रही इस तथ्य को शब्दशः यहां लिख रहा हूं: ‘‘जिस मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चक्रवर्ति सम्राट अशोक के वंशज मौर्य वंश के बौद्ध सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या उसी के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र-शुंग ने धोखे से कर दी थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था. उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया...

लॉकडाउन व इस तरबूज में क्या समानता हो सकती है?..

लॉकडाउन व इस तरबूज में क्या समानता हो सकती है?.. समानता यह है कि; "जिस प्रकार एकाएक प्रकट होकर लॉकडाउन कह दिया गया उसी प्रकार स्टेशन से ट्रेन चलते ही खिड़की पर बैठे युवक ने बिना सोचे समझे तरबूज खरीद लिया" अब समस्या यह है कि; "लॉकडाउन वो गले की हड्डी बन गया जो न तो अगली जा रही और न ही निकल आप रही है, इसी प्रकार यह तरबूज खिड़की से अंदर आ नही पा रहा और न ही छोड़ा जा सकता है" अब; "लॉकडाउन ने आर्थिक स्तिथि की कमर तोड़ दी है उसी प्रकार यह तरबूज इस व्यक्ति का हाथ जरूर दुखा देगा जब तक कि अगला स्टेशन न आ जाये" इसके अलावा; 1.महाभक्तिकाल के भक्त यह नही समझा पा रहे है कि जिस समय 8 हजार रोजाना केस आ रहे है उस समय खोल दिया गया तो फिर लगाया ही क्यो था?. इसका क्या फायदा हुआ?. 2.उसी प्रकार तरबूज का मालिक भी समझा नही पा रहा कि चलती ट्रेन की खिड़की से तरबूज लिया ही क्यों था?.  वैसे मेरी सलाह यह है कि;  "महाभक्तिकाल के भक्तों से लॉकडाउन पर बहस न करे, क्योंकि "सर सलामत" रहना बहुत जरूरी है,  क्योंकि भक्तों की खुद समझ मे नही आ रहा कि "वाह-वाह" करेंगे तो बदनाम...

46 वर्षीया जॉर्ज फ्लॉयड ब्लैक अफ्रीकन अमेरिकन समुदाय से हैं.

46 वर्षीया जॉर्ज फ्लॉयड ब्लैक अफ्रीकन अमेरिकन समुदाय से हैं. इसी ब्लैक अफ्रीकन अमेरिकन समुदाय ने अपने श्रम उत्पादन मेहनत से अमेरिका को बसाया, विकसित अमेरिका बनाया. जॉर्ज छह और 22 वर्षीया दो बेटियों के पिता हैं. परिवार की पूरी जिम्मेदारी बखूबी संभालते थे. मिन्नेसोटा राज्य के मिन्नेपोलिस शहर के रेस्टोरेंट में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे. रेस्टोरेंट मालिक के अनुसार जॉर्ज बेहद मेहनती थे अपने काम को पूरी इमानदारी से करते थे. 25 मई जॉर्ज के लिए मनहूस दिन था. किसी अज्ञात व्यक्ति ने पुलिस को फ़ोन कर शिकायत की उसे किसी व्यक्ति पर शक है वह 20 डॉलर के जाली नोट से भोजन खरीद रहा है. पुलिस टीम पांच मिनिट पर बताए स्थान पर पहुंच गई. पुलिस ऑफिसर डेरेक चौविन की नजर जॉर्ज पर पड़ी जो भोजन खरीद कर खा रहे थे. फ़ूड स्टोर पर अन्य लोग भी भोजन खा रहे थे लेकिन शक़ के आधार पर सिर्फ जॉर्ज को हाथ ऊपर करने को कहा गया, जॉर्ज कुछ समझ नही पाए, उन्होंने सवाल किया. तीन पुलिस अफसरों ने जॉर्ज को ज़मीन पर पटक दिया, अन्य पुलिस डेरेक चौविन ने अपना बायां पैर जॉर्ज की गर्दन पर रख दिया. कुल 8 मिनिट तक डेरेक चौविन ने जॉर्ज की गर्दन...

अमरीका आर्थिक के अलावा सामाजिक

अमरीका आर्थिक के अलावा सामाजिक तौर पर भी महान देश क्यों है, उसे जानने के लिए वर्तमान के "जॉर्ज फलोयड" आन्दोलन पर हमे नजर डालनी चाहिए, जिसमे "अश्वेत व्यक्ति" की श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा हत्या करने पर वंहा के "श्वेत लोग" पुलिस अधिकारी को बचाने की जगह उसे "कड़ी सजा" देने के लिए प्रदर्शन कर रहे है.  लॉकडाउन के बीच अमरीका में एक आन्दोलन ने कई शहरो को जद में ले लिया है, यह आन्दोलन इस कद्र तक बढ़ गया है की डोनाल्ड ट्रम्प की अपील पर पेंटागन ने सेना को हिदायत दी है की वो चार घंटे के शोर्ट नोटिस पर स्तिथि पर काबू करने के लिए पोजीशन लेने के लिए तैयार रहे।  1.आंदोलन का विषय    **************** इस आन्दोलन का विषय एक अश्वेत अथार्त काले व्यक्ति "जोर्ज लोयड" की हत्या से शुरू हुआ. जिसमे अम्रीका के मिनेपौलिस शहर में फर्जी बिल के मामले में एक अश्वेत व्यक्ति को पुलिस अधिकारी डेरेक शाविन जो की श्वेत था, ने पकड़ा और सडक पर ही उसकी गर्दन पर अपने पैर को रख दिया जिससे उस अश्वेत व्यक्ति की सांसे उखड़ने लगी, इस पुलिस अधिकारी ने पुरे 9 मिनट तक अपने पैर को उसकी गर्दन...