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होली : अश्लीलता का सामाजीकरण

होलिका शहादत दिवस पर शत् शत् नमन 🌹🙏🙏🌹

होली  : अश्लीलता का सामाजीकरण
1. होली हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से एक हैl
2. रंग, राख, अबीर, कीचड़, गोबर, पेंट आदि में साराबोर हो कर उतेजक और अश्लील गीतों के साथ  प्रत्येक वर्ग के हिन्दू स्त्री-पुरुष इस त्योहार के जश्न में दिनभर डूबे रहतें हैंl
3.  इस दिन छेड़छाड़, फब्तियां, अश्लील टिप्पणियाँ सब जायज मन जाता हैंl कुछ ऐसे सबंध हैं जैसे जीजा-साली, देवर-भाभी, ननदोई-सरहजिन आदि के बीच हँसी-ठिठोली और रंग-गुलाल का प्रयोग तो सभी समाजिक हदें पार कर जाते हैंl
4. उस दिन हिन्दू यूवतीयाँ अपने ही घर में असुरक्षित महसूस करती हैंl कुछ स्त्रियाँ तो परम्परा के नाम पर इसे अनिच्छापूर्वक सहन करती हैं परन्तु कुछ महिलाएं इसे बुरा नहीं मानती यही आर्य प्रवृति हैl
5. क्योंकि एक ओर तो छेड़छाड का समाजीकरण दुसरे तरफ नशीले पदार्थों का खुल्मखुल्ला उपयोग l
6.  होली के गीतों (फागुआ) में खुल्मखुल्ला भड़काऊ और अश्लील शब्दों का प्रयोग भी जायज माना जाता हैl
7. इस दिन हजारों लिटर शराब, क्विंटल के क्विंटल मांस गटक दिए जाते हैंl शराब और भांग  का सेवन तो मनो होली के दिन धर्म बन जाता जाता हैl
8.  होली के दिन सबसे ज्यादा दंगा-फसाद, मार-पीट, छेड़खानी, आगजनी तथा बलात्कार की घटनाएँ होती हैl सम्मत का स्थल तो पुराना वैर का हिसाब चुकाने का बेहतर मौका होता हैl

होली एक फसल पर्व (Harvest Festival) है l
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1. वास्तव में होली फसल पर्व हैl (Harvest Festival) हैl
2. चैत हिन्दी साल का प्रथम माह मन जाता है क्योंकि इसके बाद मानसून आधारित कोई खेती नहीं होती हैl
3. सभी किसान खेती के उपकरण जैसे हल, हेंगा, जुआठ, बगना, पैना आदि को इस दिन पुजा कर अगले मानसून खेती के लिए रख देता हैl
4.  यह परम्परा सिन्धुघाटी सभ्यता के मूलनिवासी पूर्वजों के काल में प्रचलित थी जो आज तक चली आ रही हैl
5.  भारत के मूल निवासी प्रकृति के पूजक थे कृषि सामग्री जैसे जैसे हल-फाल, बृषभ आदि की पूजा करते थे क्योंकि ये खेती में सहायक होते हैं जिससे उनकी जीविका चलती थी l

 होलिका भारत की मूलनिवासी क्रन्तिकारी महिला थी l
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1. विदेशी आर्य ब्राम्हणों ने मूलनिवासी इतिहास को विध्वंस कर हमारे समक्ष झूठा इतिहास रखा हैl
2. वह हमारे कुल पूर्वजों के प्रति घृणात्मक अफवाह फैला कर हमसे ही उनहें अपमानित करवाता है तथा उसके क़त्ल पर जश्न मनवाता हैl
3.  इसके लिए वह नाना प्रकार के योजना बनाता है तथा झूठे किस्से गढ़ता हैl
4. पुराण कथा के अनुसार होलिका को ढ़ोंणढा नाम की एक राक्षसी बताया गया है जो शुद्र जाति की थी और वह राज्य के बच्चों को डराया करती थी l
5. वास्तव में असुर, राक्षस, दस्यु आदि भारत के मूलनिवासी थे जो बड़े-बड़े नगरों और किलों के मालिक थें l
6. ढ़ोंणढा को सबक सिखाने के लिए राज्य के पुरोहित ने लोगों को बताया की लोग उसे भद्दे एवं अश्लील गालियाँ दे, गाने गये, इस शोरगुल से राक्षसी मर जाएगी l
7. राजा ने ऐसा ही किया तब राक्षसी मर गई और उस दिन को होलिका या अड्डा कहा गया l

सुर, असुर, राक्षस : मिथक और यथार्थ
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 1. वास्तव में असुर और राक्षस भारत के मूलनिवासी थे जिन्होंने विदेशी आर्य ब्राम्हणों का डटकर मुकाबला किया था l
2. जो अपने देश और समाज की रक्षा के लिए लडे वह रक्षस अथवा रक्षक कहलाता हैl
3. रक्षक ही पुराणों में राक्षस के रूप में स्थापित कर दिया गया हैl
4. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने सम्पूर्ण वांग्मय-7 में लिखा है की असुर अथवा राक्षस भी जन-विशेष मानव नाम ही थेl
5. असुर शब्द प्रजातीय नाम है जो विभिन्न जनजातियों के लिए दिया गया हैl ये जनजातियाँ अपने विशिष्ट नामो से पुकारे  जाते है, जैसे दैत्य, दानव, दस्यु, कलेय, कालीन,नाग, निवात,-कवच, पुलोम, पिचास और राक्षस l
6. वाल्मीकि ने रामायण के बालकाण्ड (45/38) में सुर-असुर की परिभाषा करते हुये लिखा है- “सुरा पीने वाले सुर और सुरा नहीं पीने वाले असुर कहे गये l”
7. ब्राह्मण को ही सुर, आर्य, देव, भूसुर कहा जाता है l असुर का अर्थ होता है (असु=प्राण) प्राणवाण, वीर्यवान, शक्तिवान तथा सुरापान नहीं (अ=नहीं+ सुर=सुरा पीनेवाला) करनेवाले l
8. ऐतेरेय ब्राम्हण में कहा गया है कि जो प्राणों के इन्द्रियों में रमण करता है वह असुर है (असुषु प्रानेषु इन्द्रियेषु एवं रमन्त इति असुराः) l

होलिका, प्रहलाद, और हिरण्यकश्यप
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1. एक कहानी के अनुसार होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप के बागी पुत्र प्रहलाद को गोद में ले कर जलाने बैठी थी l वह ऐसी चादर ओढ़ी थी जिससे वह आग से बच सकती थी, परन्तु ईश्वर कृपा से वह चादर उड़कर विष्णु भक्त प्रहलाद को ढक लिया और होलिका जलकर मर गई l
2. विश्लेष्ण करने पर यह एक विल्कुल असत्य और अवैज्ञानिक  कथा है तथा सत्य से परे हैl
3. वस्तुतः हिरण्यकश्यप प्रहलाद और होलिका भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज के राजघराने से संबंध रखने वाले लोग थे l
4. विदेशी आर्य ब्राम्हणों ने विद्रोही हिरण्याक्ष जो हिरण्यकश्यप का भाई था, को धोखे से मार दिया l
5.  वास्तविकता यह है की मूलनिवासी राजा हिरण्याक्ष अपनी खोई हुई राज्य को आक्रमणकारी और लुटेरा विदेशी आर्य ब्राम्हणों से जीत कर वापस ले लिया था, बाद में आर्यों ने मौका पा कर उसे इर्ष्या वष छलपूर्वक  हत्या कर दी l
6.  भाई के मृत्यु के बाद हिरण्यकश्यप मानसिक रूप से काफी दुर्बल हो चूका था, दूसरी तरफ विदेशी आर्य ब्राम्हणों ने उसके बेटे प्रहलाद को उसके खिलाफ बहका कर अपने पक्ष में कर लिया था l
7. प्रहलाद मूलनिवासी धर्म से विमुख होकर आर्यों के बहकावे में पड़कर आर्य धर्म मानने लगा था पिता का खिलाफत करने लगा था, उसके नाम पर कितने ही चमत्कारी किस्से पुराणों में गढ़े गये l
8. “इधर मौका देखकर दुर्बल हिरण्यकश्यप को ईरानी आर्य नृसिंह देव ने निर्ममतापुर्वक मार डाला l नृसिंह या नृग के वशंज आज भी ईरान में रहते हैं और नृग्रीटो कहलाते हैंl इतिहासकारों के अनुसार ईरान के नरमसिन (नृसिंह देव) की अर्धसिंह मूर्ति हैl”
9. विदेशी आर्य ब्राम्हणों ने नृसिंह देव को ही पुराणों में नरसिंह अवतार के रूप में प्रचारित किया है जो हिरण्यकश्यप का वध किया l आज भी यही कथा जनमानस पर अंकित हैl
10. प्रहलाद का कुलद्रोही प्रवृति लाख समझाने-बुझाने पर भी नहीं खत्म हुआ, अंततः हिरण्यकश्यप ने उसे गृह निकाल की सजा दे दिया l
11. इसी बिच होलिका की शादी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होना तय हुआ, होलिका उस रात अपने भतीजे से मिलने के तिव्र ममतापूर्ण इच्छा के कारण धवल चांदनी रात में अपने भाई हिरण्यकश्यप से छिपकर निकल पड़ी, रास्ते में होलिका अकेली थी, अकेली अवस्था में मौका पा कर बिगडे आर्य युवकों ने होलिका का सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दिया l
12. इस तथ्य को छुपाने के लिए आर्यों ने इस घटना को रंग, कीचड, और अबीर युक्त होली पर्व से जोड़ दिया जिसे अज्ञानतावश मूलनिवासी समाज मनाता रहा है ।
 13. तथागत बुद्ध इस प्रकार के पर्व को “बाल-पर्व” अर्थात मूर्खों का त्योहार बताया है इसे कभी नहीं मनाना चाहिए l 
14.  इसके स्थान पर “होलिका शहादत दिवस“ मनाना चाहिए l
15.  होलिका वीर, साहसी और प्रेम की प्रतिमूर्ति  थी l वह मूलनिवासियों की शान बेटी-बहन थी l
16. होलिका दहन करना अपनी बेटी-बहन को स्वयं से इज्जत लूटना है, अपने ही पूर्वजों के चिता जला कर जश्न मनाना हैl
17.  किसी स्त्री को हर वर्ष जलाना चाहे वह दोषी ही क्यों न हो मानवता और कानून के खिलाफ हैl
18.  जनजातियों में वैर एक परम्परा है जो दुश्मन के पहचान करने और बदला लेने का पर्व है l
19. यह परम्परा पिछले दो हजार वर्ष से बहुजन पूर्वजों द्वारा जीवित रखा गया है जो आर्य दुश्मनों से प्रतिशोध लेने के प्रतिक का पहचान हैl यह परम्परा मूलनिवासियों द्वारा अपने पूर्वज हिरण्यकश्यप के छली आर्यों द्वारा मार दिये जाने के प्रतिशोध लेने के प्रतिक का पहचान हैl
20.  जिस पर्व का हमे विरोध करना चाहिए उसे हम अज्ञानतावश खुशी के त्योहार के रूप में मानते हैंl
21.  इस पर्व के असलियत जानने के पश्चात् होली के प्रति बहिजनो को अपनी नजरिया बदलनी चाहिए l
22.  फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पारिवारिक धम्म-संगोष्ठी, बुद्ध-कथा, भीम-कथा, या उपसोथ का आयोजन करना चाहिए तथा होलिका को श्रदांजली देनी चाहिए l                                 

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